महाशिवरात्रि हिंदु धर्म में पवित्र त्योहार माना जाता है। महाशिवरात्रि त्योहार के पीछे कई रहस्यमयी पौराणिक कथाएं हैं।इस दिन कुछ लोग अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए उपवास,व्रत, मंत्र-जाप पुजा करते हैं।तो कुछ लोग शिवजी के मंदिर में पुजा करने के लिए जाते हैं। पौराणिक कथाएं के अनुसार इस दिन शिव -पार्वती का विवाह हुआ था।
फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिवजी शिवलिंग से पहली बार प्रकट हुए थे।इसी दिन एक शिकारी को भगवान शिवजी प्रसन्न होकर उसे मोक्ष की प्राप्ति करायी।इस आर्टिकल में हम आपको महाशिवरात्रि पर्व क्यों मनाया जाता है।इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण क्या कारण है ये बताएंगे।
महाशिवरात्रि की कथा
1. महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग से शिव प्रकट हुए थे।
पौराणिक कथा के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव जी शिवलिंग से पहली बार प्रकट हुए थे इसीलिए आज के 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि त्यौहार मनाया जाता है।
2.इसी दिन शिव-पार्वती का विवाह हुआ था।
प्राचीन मान्यता के अनुसार कुछ लोगों का कहना है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह किया था।
कहते हैं कि देवी पार्वती से विवाह करने के लिए भगवान शिव ने बहुत दिन प्रतिक्षा और तपश्चार्या कि थी।और वो शुभ घड़ी आज के दिन आयी थी।
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Mahashivratri 2025: शिव-पार्वती विवाह |
3. देवी गंगा को जटा में धारण किया था।
कहते हैं कि पौराणिक कथा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव ने देवी गंगा को अपने जटा में धारण किया था।
देवी गंगा आकाश की ओर से पृथ्वी पर पूरे उफ़ान के साथ पृथ्वी पर उतर रही थी, जिससे पृथ्वी का
विनाश हो सकता था। इसलिए भगवान शिव ने पृथ्वी का विनाश होने से बचाने के लिए महाशिवरात्रि के दिन देवी गंगा को अपने जटाओं में धारण किया था। और इसी दिन शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है।
4. महाशिवरात्रि के दिन समुद्र मंथन किया था।
कहते हैं कि प्राचीन काल में जब देवता और राक्षस अमृत कलश के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे। तब मंथन करते समय बहुत सारा विष निकला था। पूरी देवी-देवता पृथ्वी के विनाश से डर गए थे।
तब भगवान शिव ने स्वयं सारा विष पीकर
अपने कंठ में रोक कर रखा था। जिस वजह से उनका कंठ नीला पड़ गया था। इसलिए भगवान शिव को 'नीलकंठ' भी कहा जाता है।
उन्होंने विष पीकर सृष्टि और देवता गण दोनों को बचा लिया था। इसलिए महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है।
5. चित्र भानु शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति की।
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में
चित्र भानु नाम का एक शिकारी था। वह शिकारी करके अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा था। उसके ऊपर साहूकार का बहुत सारा कर्ज होने के कारण उसे शिव मठ में बंदी बनाया था।
ठीक उसी दिन महाशिवरात्रि का दिन था। फाल्गुन मास के चतुर्दशी दिन में उसने शिवरात्रि का व्रत की कथा सुनी थी। शाम होते ही साहूकार ने उसे कर्ज चुकाने के लिए एक मौका दिया। भूखा होने के कारण उसने दिन भर शिकार की खोज की। लेकिन उसे दिनभर कोई शिकार नहीं मिली।
वह शिकार करने के बहाने बहुत दूर चला गया था। उसने एक तालाब के पास एक बड़े पेड़ पर चढ़कर शिकार आने का इंतजार करने का सोचा।
शिकारी ने सोचा कि रात में कोई भी प्राणी या जंगली जीव पानी पीने के लिए जरूर आएगा।
इसी बहाने पेड़ पर बैठकर वह इंतजार कर रहा था। वह जिस पेड़ पर बैठा था वह बिल्व पत्र का पेड़ था। और वह अपने हाथों से एक-एक बिल्व पत्र तोड़कर नीचे गिर रहा था। लेकिन नीचे एक बेलपत्र से ढका हुआ एक शिवलिंग था। भूखे होने के कारण और बेलपत्र अनजाने में शिवलिंग पर पड़ने के कारण शिकारी को शिवरात्रि व्रत का फल मिला।
रात के समय में एक गर्भवती हीरनी उसी तालाब के पास पानी पीने के लिए आई।अब चित्र भानु शिकारी उस हिरण की शिकार करने जा रहा था।
तब वह गर्भवती हिरणी बोलने लगी कि मैं गर्भवती हूं मुझे मार कर तुम्हें क्या मिलेगा। मैं अपने बच्चों को जन्म देकर आती हूं तब तुम मुझे मार लेना। शिकारी को उस पर दया आई। हिरनी वापस आने का वादा करने के बाद वह चली गई।
इस प्रकार उसने अनजाने में प्रथम प्रहर की पूजा भी समाप्त कर ली। क्योंकि वह बेलपत्र अभी भी नीचे शिव लिंग पर गिर रहा था। और उसे शिकार न मिलने के कारण भूखा रहना पड़ा।
कुछ समय के बाद पानी पीने के लिए एक दूसरी हिरनी वहां आई। शिकारी ने तब धनुष्या बान उठाया। शिकारी को दखते ही वह भी हिरनी बोली
कि मुझे अपने पति से अंतिम बार मिलना है। उनसे बहुत सारा प्यार करना है। फिर मैं वापस आऊंगी। इस तरह रात का दूसरा प्रहर भी बीत गया।
तीसरे प्रहर में भी एक हिरनी आई। उसने भी अपने बच्चों को दूध पिलाकर वापस आने का वादा किया और चली गई। तीसरा प्रहर भी
बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ने पर और भूखा रहने कारण शिव की सेवा हो रही थी।
ऐसे ही शिकारी का समय बिताता गया। और सुबह का चौथा प्रहर शुरू हो गया था। तभी वहां पर एक हिरन पानी पीने के लिए आया। चित्र भानु शिकारी ने सोचा कि अब मैं इस हिरण को नहीं जाने दूंगा। और शिकार करके उसे खाकर अपनी भूख मिटा दूंगा। तभी उसे हिरण ने अपने तीनों पत्नियों को मिलने की इच्छा जताई। उसके यह कहने के बाद शिकारी ने रात की पूरी घटना उस हीरन को सुना दी। तब हिरण ने कहा कि मैं अपने तीनों पत्नी को वचन दिया है। मैं उन सबके साथ थोड़ी देर में तुम्हारे समक्ष उपस्थित रहूंगा। शिकारी ने उसे भी जाने दिया।
इस तरह चार प्रहर बीतने के बाद सुबह हो गई। और शिकारी को शिकार न मिलने के कारण उपवास, रात्रिभर जागरण और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से अनजाने में ही शिवरात्रि की पूजा संपन्न हो गई थी। उससे यह शिवरात्रि व्रत का फल तुरंत मिल गया। थोड़ी देर बाद हिरण और उसका परिवार शिकारी के सामने आ गया। लेकिन शिकारी ने उन सब को जीवन दान दे दिया।
अनजाने में शिवरात्रि व्रत का पालन करने से चित्र भानु शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई।
जब मृत्यु काल में यमदूत शिकारी जीव को ले जाने आए तो शिव गणों ने उन्हें वापस भेज दिया और उसे शिवलोक ले गए शिवजी की कृपा से
चित्र भानु अपने पिछले जन्मों को याद कर पाया था। और शिवरात्रि व्रत का फल मिलने पर उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसलिए आज 26 फरवरी को महाशिवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है।
महाशिवरात्रि कैसे मनाई जाती है।
महाशिवरात्रि के दिन भक्त शिवलिंग पर दूध, धतूरा फूल, बेलपत्र और जलाभिषेक करते हैं।
माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर पंचामृत अर्पित करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
क्या है महाशिवरात्रि का असली इतिहास।
कहते हैं कि भगवान शिव ने आज के दिन तांडव नृत्य किया था। यह तांडव नृत्य शक्ति का प्रतीक माना जाता है। जो ब्रह्मांड को निर्माण, संरक्षण और विनाश का प्रतीक है। संस्कृत में महाशिवरात्रि शब्द का अर्थ है की 'शिव की बड़ी रात'।
शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर क्या है।
शिवरात्रि और महाशिवरात्रि दोनों ही अलग-अलग है। जबकि महाशिवरात्रि साल में एक बार फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है।
शिवरात्रि हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है।
साल भर में कुल 12 मासिक शिवरात्रि आती है।
महाशिवरात्रि का उद्देश्य पूजा के साथ मोक्ष प्राप्ति है।
जब की शिवरात्रि का उद्देश्य भगवान शिव की उपासना और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना है।
महाशिवरात्रि साल में एक बार आती है। इसलिए बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है।
महाशिवरात्रि को क्या करें और क्या न करें
महाशिवरात्रि के दिन उपवास और ध्यान धारणा करें। शिवलिंग पर दूध, धतूरा फूल और जलाभिषेक करें।
महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर तुलसी के पत्ते,
हल्दी और कुमकुम नहीं चढ़ाना चाहिए। तील, सरसों के तेल से अभिषेक करना वर्जित माना गया है।
खंडित और टूटी हुई बेलपत्र नहीं चढ़ाना चाहिए।
शिवलिंग पर नारियल का पानी भी नहीं चढ़ाया जाता है। क्योंकि इसे अन्न और जल का अपमान माना जाता है।
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महाशिवरात्रि स्टेटस (Mahashivratri 2025 status)
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अंत ही आरंभ है। Mahashivratri status 2025 |
महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व
महाशिवरात्रि की रात आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।
इस रात पृथ्वी की ऊर्जा उर्ध्वगामी होती है।
जो ध्यान करने वाले व्यक्तियों के लिए फायदेमंद है।
महाशिवरात्रि अमावस्या की रात के ठीक पहले आती है।
जिससे यह समय मानसिक और आध्यात्मिक रूप से सर्वोत्तम माना जाता है।
Conclusion:
आपने ब्लॉग के पूरे पोस्ट में देखा कि आखिर क्यों महाशिवरात्रि मनाई जाती है। Mahashivratri 2025:
Mahashivratri फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी में 26 फरवरी को मनायी जाएगी।
समुद्र मंथन, शिव पार्वती विवाह, देवी गंगा को
जाटाओं में धारण करना , शिव भगवान का तांडव नृत्य और और चित्र भानु भील समाज के
शिकारी को मोक्ष प्राप्त की। इन सभी के कारण महाशिवरात्रि त्योहार मनाया जाता है।
अपने पोस्ट में देखा कि महाशिवरात्रि के लिए कौन सा वैज्ञानिक कारण माना जाता है और महाशिवरात्रि के दिन क्या करें और क्या न करें इस आर्टिकल पोस्ट में हमने देखा। सभी भारतवासियों को महाशिवरात्रि की शुभकामना।
FAQ
1. महाशिवरात्रि कब मनाई जाती है।
महाशिवरात्रि साल में एक बार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष चतुर्दशी में 26 फरवरी 2025 को मनाई जाती है।
2.महाशिवरात्रि की कथा।
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव ने पार्वती से विवाह किया था।तथा भिल्ल समाज के चित्र भानु शिकारी को मोक्ष प्राप्ति की। समुद्र मंथन किया था। और देवी गंगा को अपने जटाओं में धारण किया था।
3.महाशिवरात्रि का महत्व।
इस दिन महाशिवरात्रि व्रत रखने से सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख समृद्धि आती है।
इस दिन भजन, ध्यान और सत्संग किया जाता है।
यह दिन स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाया जाता है।
4.महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व।
इस रात पृथ्वी की ऊर्जा उर्ध्वगामी में होती है जो ध्यान करने वाले व्यक्तियों को फायदेमंद है।
महाशिवरात्रि अमावस्या की रात के ठीक पहले आती है, जिससे यह मानसिक और आध्यात्मिक रूप से सर्वोत्तम समय माना जाता है।
5.शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर क्या है।
महाशिवरात्रि साल में एक बार आती है। जबकि शिवरात्रि साल में 12 बार में आती है।
महाशिवरात्रि फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को मनायी जाती है। जबकि शिवरात्रि हर महीने की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी में मनाई जाती है।