Vat Savitri vrat 2025: वट सावित्री व्रत कब है? जाने इस व्रत की रहस्यमयी कहानी और पुजाविधी

 
Vat Savitri vrat 2025: वटसावित्री व्रत कब है? जाने इस व्रत की रहस्यमयी कहानी और पुजाविधी
Vat Savitri vrat 2025 image: Shutterstock 

Vat Savitri vrat 2025: 
वट सावित्री हिंदू धर्म में मुख्यतः महिलाएं ही यह त्यौहार मनाती है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, तरक्की, अच्छी सेहत और सुखी जीवन के लिए निर्जला उपवास रखती है। इस साल 10 जुन 2025 को वट सावित्री का व्रत रखा जाएगा। इस दिन महाराष्ट्र में इस त्यौहार को महिलाएं मनाती है। यह व्रत तो मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और महाराष्ट्र में मनाया जाता है। हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत को स्त्री के त्याग, प्रेम और सहनशीलता का प्रतीक माना जाता है। इस दिन मुख्य रूप से सुहागिनें वट वृक्ष की पूजा 
 और उपासना करते हैं। इसी के साथ ही  वृक्ष की परिक्रमा करते हुए सावित्री के कथा का पाठ भी करती हैं। कई जगह पर यह व्रत 26 मई 2025 को रखा जाएगा। इस योग में कुछ खास उपाय करने से अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस ब्लॉग आर्टिकल में आज हम आपको बताएंगे कि वट सावित्री व्रत कब है , और वटसावित्री व्रत की कहानी और पुजा विधि बताएंगे। इसलिए इस आर्टिकल को अंत तक पढ़े।


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    वट सावित्री व्रत कब है? (Vat Savitri vrat kab hai?)


    वटसावित्री व्रत कथा एक पौराणिक कहानी है जो सावित्री नाम के एक रानी की पतिव्रता और दृढ़ता की कहानी है। वट सावित्री  व्रत महाराष्ट्र में 10 जुन को मनाया जाएगा। इसी दिन पूर्णिमा सुबह 11:35 में शुभ समय शुरू होगा।
    महाराष्ट्र में इसको वट पूर्णिमा भी कहा जाता है।

    उत्तर भारत नहीं होते वर पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस बार वट सावित्री का व्रत पंजाब हरियाणा और ऐसी कोई जगह में 2025 में 26 में को मनाया जाएगा। जो जेष्ठ अमावस्या के दिन पड़ता है। यह व्रत मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और महाराष्ट्र में मनाया जाता है।

    पंचांग के मुताबिक वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि पर रखा जाता है। इस साल जेष्ठ माह की अमावस्या तिथि की शुरुआत 26 मई 2025 को दिन में 12:11 पर हो रही है।

    वट सावित्री की रहस्यमयी  कहानी 

    पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री नाम की एक रानी की पतिव्रता और दृढ़ता कहानी है। यह कथा आपको बताती है कि कैसे सावित्री ने अपनी बुद्धि और समर्पण से अपने पति सत्यवान को यमराज के पास से वापस पा लिया था।
     
    सावित्री नामक एक पत्नी की शक्ति और सत्यवान के प्रति समर्पण को दर्शाती है।
    सावित्री ने अपनी तपस्या और समर्पण के बल पर 
    अपने पति सत्यवान को यमराज से मृत्यु के बंधन से मुक्त कराया था।

    1.सावित्री और सत्यवान की शादी 

    भद्र देश के अश्वपति नाम का एक राजा था। उसे कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने सावित्री देवी की पूजा की थी। सावित्री देवी की कृपा से जन्म लेने के कारण कन्या का नाम सावित्री रखा गया था। सावित्री बहुत रूपवान थी लेकिन उन्हें योग्य वर मिल नहीं रहा था इसलिए सावित्री के पिता दुखी थे। इसलिए उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलासने के लिए भेजा।

    सावित्री वर की तलाश में तपोवन में भटकने लगी। वहां सॉल्व देश के राजा धुमत्सेन रहते थे। क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया।

    ऋषिराज नारद को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहां की, राजा सत्यवान गुणवान है, धर्मात्मा है, बलवान भी है लेकिन उनकी आयु बहुत छोटी है एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी।

    ऋषि राज नारद की बात सुनकर राजा अश्वपति  चिंता में डूब गए और सावित्री ने उनसे कारण पूछा तो राजा ने कहा कि पुत्री तुमने जिस राजकुमार को अपना वर के रूप में चुना है वह अल्पायु हैं।
    तुम्हें किसी और को अपना जीवन साथी बनना चाहिए। 
    इस पर सावित्री ने कहा कि पिताजी आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं। राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक बार ही किया जाता है। 

    सावित्री हठ करने लगी और बोली मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी।

    राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया।

    2.सत्यवान की मृत्यु 

    सावित्री की शादी होने के बाद सावित्री अपने ससुराल चली जाती है। वह अपने पति सत्यवान की वह दिन रात सेवा करती है। उसके साथ ही अपने सास-ससुर की भी सेवा करती है। समय बितता चला गया।

    नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था। वह दिन जैसे-जैसे करीब आने लगा, सावित्री अधीर होने लगी। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि द्वारा सत्यवान के बारे में जो कुछ भविष्यवाणी की थी, उसी निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया।

    हर रोज की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने के लिए जंगल में चले गये। सत्यवान के साथ सावित्री भी लकड़ी काटने के लिए आ गई थी। जंगल में पहुंचने के बाद सत्यवान लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़ गया। तभी सत्यवान के सिर में तेज दर्द होने लगा, दर्द के कारण सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गए। सावित्री को अपना भविष्य पहले से ही मालूम था।

    सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री उसका सिर सहलाने लगी तभी वहां यमराज आ गए। 

    यमराज अपने साथ सत्यवान के प्राण को लेकर चले गए। अब सावित्री के पास सिर्फ सत्यवान का
    मृत शरीर ही पड़ा था।

    3. सावित्री की यात्रा यमलोक 

    Vat Savitri vrat 2025: वट सावित्री व्रत कब है? जाने इस व्रत की रहस्यमयी कहानी और पुजाविधी
    वट सावित्री 2025


    सत्यवान की मृत्यु होने के बाद सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे स्वर्ग चली गई। और उनसे सत्यवान के प्राण वापस करने की प्रार्थना की। इस वजह से यमराज सावित्री पर प्रसन्न हो गए और उन्होंने सावित्री को तीन वरदान दिया था।

    4. वरदान और सत्यवान की वापसी 

    सावित्री यमराज के पीछे-पीछे स्वर्ग चली गई थी और उन्होंने यमराज से प्राथना की कि सत्यवान के प्राण लौटा दिया जाएं।

    यमराज ने सावित्री को समझने की बहुत कोशिश की कि यही विधि का विधान है। लेकिन सावित्री नहीं मानी।
     
    यमराज ने सावित्री के साहस और समर्पण से प्रसन्न होकर तीन वरदान मांगने को कहा।

    सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देखकर
    यमराज ने सावित्री से कहा कि हे देवी 
     तुम धन्य हो। तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो।

    सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे है, उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें।
    यमराज ने कहा ऐसा ही होगा। जाओ अब लौट जाओ।

    लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के लिए यमराज के पीछे-पीछे चलती रही और। यमराज ने कहा कि देवी तुम वापस जाओ। तब सावित्री ने यमराज से कहा कि मुझे अपने पति के पीछे-पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। यह सुनकर उन्होंने फिर से एक और वरदान मांगने के लिए कहा। 

    सावित्री ने कहा कि मेरे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुनः वापस लौटा दे। 

    यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा अब तुम लौट जाओ। लेकिन सावित्री यमराज के पीछे-पीछे चलती रहीं।

    इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा। यमराज ने इसका वरदान भी सावित्री को दे दिया। 

    सावित्री ने यमराज से कहां की प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हुं और मुझे पुत्रवती होने का
    अपने आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ते ही पड़े। यमराज अंतर्ध्यान हो गए। और सावित्री उसी वटवृक्ष के 
    पास आ गई, जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा हुआ था।

    सत्यवान जीवंत तो हो गया था अब सावित्री और सत्यवान वन से अपने राज्य की ओर चल पड़े। जब घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उनके माता-पिता को ज्योति प्राप्त हो गई है।

    इस प्रकार सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लाये और उसी के साथ ही अपने अंधे सास-ससुरको दिव्य दृष्टि प्रदान की। और उनका राज्य भी उन्हें वापस मिल गया।

    वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से उपासक के वैवाहिक जीवन और जीवनसाथी की आयु पर किसी भी प्रकार का कोई संकट आया हो तो वो टल जाता है।

    वट सावित्री की पूजा विधि कैसे करें। (Vat Savitri vrat 2025 Puja vidhi)


    1. सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और घर की साफ सफाई करें। और आंगन में रंगोली डालें। 
    पूजा घर की भी साफ सफाई करें। 

    2.वटसावित्री व्रत में बरगद के पेड़ का बहुत महत्व होता है।

    3. बरगद के पेड़ के नीचे साफ सफाई करें और मंडप बनाएं। 

    4. वटवृक्ष के नीचे भी साफ सफाई करें और पुजा स्थान तयार करें।

    5. सावित्री और सत्यवान की पूजा करे, और वट वृक्ष को जल चढ़ाएं।

    6. लाल धागे से वटवृक्ष को बांधे और सात बार परिक्रमा करें। 

    7. व्रत कथा सुने और आरती करें। 

    8. गरीबों और ब्राह्मणों को दान दे और उनसे आशीर्वाद ले। 

    9. व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद करें।


    पुजा सामग्री 

    धुप,घी, बरगद का पेड़,सुहाग का सामान,जल से भरा कलश आदि सामग्री लगती है।



    वटवृक्ष का महत्व 

    वटवृक्ष को दी दीर्घायू और अमरत्व 
    का प्रतीक माना जाता है। सावित्री ने सत्यवान के प्राणों को वापस लाने के लिए वट वृक्ष के नीचे ही यमराज से प्रार्थना की थी।

    वट सावित्री व्रत में वट रक्षा की पूजा की जाती है।
    क्योंकि यह वृक्ष सावित्री की शक्ति और दृढ़ता का प्रतीक है।
    महिलाएं वटवृक्ष के चारों ओर धागा बांधती है।
    और परिक्रमा करते हैं। 
    वट सावित्री व्रत कथा पतिव्रता और दृढ़ता की 
    प्रेरणादायक कहानी

    इस कथा में सावित्री का अपने पति के प्रति समर्पण, दृढ इच्छा शक्ति और यमराज को भी अपनी शक्ति से पराजित करने का वर्णन है। यह कथा पति-पत्नी के बीच अटूट प्रेम और समर्पण का प्रतीक है, और वट सावित्री व्रत इसी कथा के स्मरण में मनाया जाता है।


    वट सावित्री व्रत कैसे रखें


    वट सावित्री व्रत के त्यौहार में सुहागन महिलाएं
    ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करती है और व्रत का उपवास करती हैं। महिलाएं 16 श्रृंगार करती है। यानी की अच्छे कपड़े पहन कर सजती संवरती है।
    टोकरी में पूजा का सामान लेकर जहां बरगद का पेड़ है वहां पूजा के लिए चली जाती है। वटवृक्ष को हल्दी कुमकुम लगाती है। जल और फूल चढ़ती है। 
    और फिर महाराष्ट्र में कुछ महिलाएं फल के रूप में आम रखती है। इसके बाद वट वृक्षों को होली चंदन का टीका लगाती है। और हाथ में कच्चा सूत लेकर वृक्ष में लपेटते हुए परिक्रमा करके पूजा करती है। 

    वटवृक्ष के नीचे बैठकर सावित्री की कथा सुनती है और उसके बाद आरती करती है।

    सुहागन महिलाएं एक दूसरे को हल्दी कुमकुम लगती है।

    यह वट सावित्री व्रत महिलाएं पति की लंबी उम्र और सुख समृद्धि के लिए रखती है।
     
    व्रत रखने से सुहागन महिलाओं को अखंड सौभाग्य और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।


    वट सावित्री की आरती 

    अश्वपती पुसता झाला ।।
    नारद सांगताती तयाला ।।
    अल्पायुषी सत्यवंत ।।
    सावित्री ने का प्रणीला ।।
    आणखी वर वरी बाळे ।।
    मनी निश्चय जो केला ।।
    आरती वडराजा ।।1।।

    दयावंत यमदूजा सत्यवंत ही सावित्री ।।
    भावे करीन मी पूजा।। आरती वडराजा।। धृ0 ।।
    जेष्ठमास त्रयोदशी।। करिती पूजन वडाशी।।
    त्रिरात व्रत करूनीया।। जिंकी तू सत्यवंताशी।।
    आरती वडराजा ।।2।।

    स्वर्गावारी जाऊनिया।। अग्नीखांब  कचळीला।।
    धर्मराजा उचकला।। हत्या घालिल जीवाला।। 
    येश्र गे पतिव्रते।। पती नेई गे आपुला।। 
    आरती वडराजा।।3।।

    जाऊनिया यमापाशी।। मागतसे आपुला पती।।
    चारी वर देऊनिया।। दयावंता द्यावा पती।। 
    आरती वडराजा।।4।।

    पतिव्रते तुझी कीर्ती।। ऐकुनि ज्या नारी।।
    तूझे व्रत आचरती।। तुझी भुवने पावती।।
    आरती वडराजा।।5।। 

    पतिव्रते तुझी स्तुती।। त्रिभुवनी ज्या करिती।।
    स्वर्गी पुष्पवृष्टी करूनिया।। 
    आणिलासी आपुला पती।। अभय देऊनिया।।
    पतिव्रते तारी त्यासी।।
    आरती वडराजा।।6।।

    वट पूर्णिमा स्टेटस, कोट्स, विशेस(Vat purnima status,quotes, wishes)


    वट पूर्णिमा स्टेटस, कोट्स, विशेस(Vat purnima status,quotes, wishes)
    वटसावित्री 2025

    1. जोडी तेरी मेरी कभी ना तुटे 
    हम तुम कभी एक दुजे न रुठें 
    सात जन्मों का रहे हमारा साथ
    वट पूर्णिमा की शुभकामनाएं 

    2. धन्य हो गया मेरा जीवन 
    पाकर साथ तुम्हारा 
    सात जन्मों तक अमर रहे, 
    साथ ये मेरा-तुम्हारा
    वट पूर्णिमा की शुभकामनाएं 

    3. सुख-दुख में हम तुम साथ निभाएंगे 
     इस जन्म में ही नहीं आनेवाले 
    सातों जन्म में 
    पति-पत्नी बनकर आएंगे 
    वट पूर्णिमा की शुभकामनाएं

    4.एक फेरा आरोग्यासाठी,
    एक फेरा प्रेमासाठी, 
    एक फेरा यशासाठी, 
    एक फेरा दीर्घायुष्यासाठी,
    एक फेरा तुझ्या माझ्या 
    अतुट सुंदर नात्यासाठी 
    वटपौर्णिमेच्या हार्दिक शुभेच्छा 

    5.सात जन्माचे नाते,साथ देईन 
    कायम हे वचन,
    वट पौर्णिमेचे व्रत करीन, 
    तुझ्या प्रेमाची ओढ कायम 
    वटपौर्णिमेच्या हार्दिक शुभेच्छा.


    वट पूर्णिमा स्टेटस, कोट्स, विशेस(Vat purnima status,quotes, wishes)
    वटसावित्री 2025

    Conclusion:(निष्कर्ष)

    Vat Savitri vrat 2025: वट सावित्री व्रत एक महत्वपूर्ण व्रत है जिसे सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखमय वैवाहिक जीवन  के लिए रखती है। इस व्रत के दौरान सुहागन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती है लाल धागे से 
     पेड़ को बांधती है और सात बार परिक्रमा करती है। इस व्रत में वट वृक्ष की पूजा करने के बाद, महिलाएं देवी सावित्री की पूजा भी करती है और व्रत कथा सुनती है। इस व्रत का पालन करने से सुहागन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और उनके पति की लंबी आयु की कामना की जाती है। अपने इस आर्टिकल में देखा कि वट सावित्री व्रत कब है? वट सावित्री व्रत की रहस्यमयी कथा और पूजा विधि, स्टेटस, आरती इसके बारे में जाना। आशा करते हैं कि आपको इस ब्लॉग आर्टिकल में लिखी हुई वट सावित्री की कथा पसंद आई होगी। ऐसे ही जानकारी पाने के लिए हमारे ब्लॉग वेबसाइट को फॉलो करें।

    FAQ:

    1. 2025 में वट सावित्री पूजा कब है?

    10 जून 2025 को महाराष्ट्र में वट सावित्री की पूजा की जाएगी। पूजा का शुभ मुहूर्त 11: 35 में होगा। वही उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा और कई जगह पर वट सावित्री पूजा 26 मई  2025 को है। 26 में को अमावस्या तिथि का आरंभ दोपहर 12:11 बजे होगा। इसलिए 26 मई को वट सावित्री व्रत रखा जाएगा।

    2. पहली बार वट सावित्री व्रत कैसे करें?

     वट सावित्री व्रत रखने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। लाल या पीले रंग के कपड़े पहने उसके बाद बरगद के पेड़ की पूजा करें। उसकी जड़ में जल चढ़ाएं और उसके चारों ओर कच्चा धागा या कलावा लपेटे। पूजा करने के बाद वड पेड़ की सात बार परिक्रमा करनी चाहिए। वट सावित्री व्रत की कथा सुनकर या पढ़कर आरती करें।

    3. वटवृक्ष की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए?

    वट सावित्री के व्रत के दिन वट वृक्ष (बरगद का पेड़) की सात बार परिक्रमा करनी चाहिए या फिर 
     7, 11 या 108 परिक्रमा करनी चाहिए ।बरगद की पेड़ की परिक्रमा करने से मान्यता है कि पति दीर्घायुष्यी होता है।महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

    4. वट पूर्णिमा पर कौन से रंग की साड़ी पहनी चाहिए।

    वट पूर्णिमा हिंदुओं का एक शुभ त्यौहार है।
    इसलिए ज्यादातर महिलाओं को वट पूर्णिमा के दिन शुभ रंगों जैसे गुलाबी, हरा, लाल और नीले रंग के कपड़े पहनाना चाहिए।

    5. वट सावित्री व्रत महिलाओं द्वारा क्यों रखा जाता है?

    वट सावित्री व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य के लिए रखती है।
    यह व्रत कथा सावित्री की कथा से जुड़ा हुआ है।
    जिसमें उसने अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस जीवित लाने के लिए कठोर तपस्या की थी।

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