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Happy Diwali 2025 |
Diwali 2025 Date: हिंदू त्यौहार में दिवाली का बहुत बड़ा महत्व है। दिवाली पर घरों में, मंदिरों में बहुत ज्यादा प्रकाश यानी रोशनाई की जाती है।
हर साल दिवाली आश्विन माह में आती है। इस साल दिवाली 17 अक्टूबर 2025 से शुरू होगी।
दिवाली पांच दिवसीय प्रकाश का पर्व होता है जो अंधेरे पर प्रकाश की जीत का प्रतीक है। दिवाली पर रोशनी क्यों की जाती है? दिवाली कब है? उसका महत्व, इतिहास दिवाली की रंगोली, क्यों मनाई जाती है इसके बारे में इस इवेंट टुडे ब्लॉग में आपको जानकारी मिलेगी। दिवाली त्योहार के दौरान घर-घर में दीप जलाए जाते है? लोग लक्ष्मी पूजन करते हैं। रंगोली बनाते हैं। आतिशबाजी, भोजन, पारंपरिक नृत्य-संगीत और प्रियजनों को उपहार देने का यह अच्छा समय होता है। हमारे ब्लॉग आर्टिकल में हमेशा सभी कार्यक्रम(Event), उत्सव, घटना, त्योहार, इसके बारे में विस्तृत जानकारी दी जाती है।
दिवाली कब है?(Diwali kab hai?)
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक अमावस्या तिथि का आरंभ 20 अक्टूबर अमावस्या तिथि पर आरंभ हो जाएगी। इस अमावस्या का आरंभ दोपहर 3:00 बजने के बाद होगा। जो 21 अक्टूबर को शाम 5:00 बजने के बाद समाप्त होगी। इसलिए इस साल सोमवार, 20 अक्टूबर 2025 को दिवाली मनाई जाएगी।
1.वसुबारस (Vasu Baras) कब है?
17 अक्टूबर 2025, शुक्रवार इस दिन रमा एकादशी, गोवत्स द्वादशी या वसुबारस होती है। वसुबारस महाराष्ट्र और गुजरात में मनाया जाता है और वसुबारस को ही दिवाली पर्व की शुरुआत का उत्सव प्रतीक माना जाता है। इस दिन का बड़ा ही महत्व वो होता है, इस दिन गए और उसके बछड़े की पूजा की जाती है मान्यता है कि वस्तु भारत की पूजा करने से धन और समृद्धि घर में आती है। यह पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है और इस दिन गायों का सम्मान करते हुए उनका पूजन किया जाता है।
'वसु' का अर्थ है ह धन या संपदा और 'बारस'(द्वादशी) कर तो है 12वीं तिथि इसलिए यह पर्व धन-धान्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। वसुबारस पर्व मनाने की विधि गोपूजन, भोजन किया जाता है कई लोग इस दिन उपवास भी रखते हैं।
2. धनतेरस/धनत्रयोदशी कब है?
महाराष्ट्र में इस साल धनतेरस का उत्सव 18 अक्टूबर 2025 शनिवार को मनाया जाएगा।
धनतेरस जिसका अर्थ है "धन का तेरह गुना",
कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाएगा।
पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस दिन को धनतेरस या धनत्रयोदशी कहा जाता है। मान्यता है कि इस शुभ दिन पर सोने, चांदी, बर्तन और झाड़ू जैसी वस्तुएं खरीदना शुभ माना जाता है।
इस दिन देवी लक्ष्मी और भगवान कुबेर की भी पूजा की जाती है मानता है कि इस दिन पूजा करने से घर में धन संपत्ति और समृद्धि आती है।
3. छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी
भारत के कुछ भागों में छोटी दिवाली यानी की नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्णा इसी दिन नरक नामक राक्षस का वध किया था। क्योंकि उसने सभी देवताओं एवं मनुष्य को बहुत तकलीफ दी थी उन पर अन्य जुलम करता था। यहां तक की उसने देवताओं की मां आदित्य की कानों की बालियां छीन कर ले गया था। इसलिए इस दिन उसका वध करने से लोग नरक चतुर्दशी का पर्व मनाते हैं। सोमवार, 20 अक्टूबर 2025 को नरक चतुर्दशी का पर्व है।
इस दिन लोग अपने जीवन से सभी पापों और अशुद्धियों को दूर करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और सुगंधित साबुन और तेल लगाते हैं।
4. दिवाली या दीपावली
दिवाली को मुख्य तो घरों ,दुकानों और मंदिरों में रोशनी की जाती है। रोशनी के इस पावन त्यौहार का मुख्य दिन है। मान्यता है कि यह पर्व बुराई पर अच्छाई और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक माना जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है, लक्ष्मी की पूजा करने से घर में धन सुख समृद्धि आती है। इस दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं, पूजा करते हैं और रोशनी के लिए दीये जलाते हैं। और कुछ पटाखे फोड़कर दिवाली मनाई जाती है।
महाराष्ट्र में मंगलवार 21 अक्टूबर 2025 को लक्ष्मी पूजन है।
5.पड़वा और गोवर्धन पूजा
महाराष्ट्र में इस दिन को दीपावली पड़वा भी कहा जाता है। इसी दिन महावीर जैन उत्सव मनाया जाता है और गोवर्धन की पूजा की जाती है। इसी दिन बलिप्रतिपदा भी होती है।
मान्यता है कि पांच पांडव इसी दिन 12 साल के वनवास के बाद हस्तिनापुर लौटे थे। इसी खुशी में उन्होंने पूरे हस्तिनापुर में मिट्टी के दीये जलाए थे।
इसे महाराष्ट्र में 'दीपावली पाडवा' कहते हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने बहुत बारिश होने की वजह से गोकुल वासियों की रक्षा करने हेतु एक विशाल गोवर्धन पर्वत अपने उंगली पर उठाया था। और बारिश इंद्रदेव ने 7 दिन के लिए छोड़ी थी। इंद्रदेव को यह क्रोध था की लोग मेरी पूजा करने की बजाय श्री कृष्ण की पूजा करते हैं। 7 दिन के लिए श्री कृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया था, और उसके नीचे सभी गोकुल वासियों को सुरक्षित रखा था। और इंद्र को हराया था। किसी दिन को याद रखते हुए लोग गाय के गोबर का उपयोग करके गोवर्धन का प्रतीक एक छोटा सा टिला बनाते है और उसकी पूजा करते हैं।
6.भाई-दूज/ भाऊ बीज
दीपावली में भाई दूज का यह दिन पारिवारिक संबंधों को समर्पित है।
भाई दूज( Bhai dooj kab hai?) के दिन पर बहने अपने भाई का टीका करती है। और उनकी लंबी उम्र और खुशहाल जीवन के लिए प्रार्थना करती है। भाई दूज को 'यमद्वितीया' भी कहा जाता है। यह दिन भाई-बहन में आपसी प्रेम और स्नेह दर्शाता है।
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दिवाली का महत्व
दिवाली पूरे भारत भर में मनाई जाती है यह सभी त्योहारों में धार्मिक सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व पूर्ण त्यौहार है। इसे दीपोत्सव भी कहा जाता है।
1 लक्ष्मी पूजन (Laxmi Puja)
सबसे पहले लोग अपने घर की साफ सफाई करते हैं। घरों की सजावट करते हैं। और उन्हें दीपो रोशनी से सजाते हैं। लोग अपने घर के द्वार पर और घर के अंदर पूजा स्थल पर रंगोली के सुंदर डिजाइन बनाते हैं। दिवाली के तीसरे दिन लक्ष्मी पूजा की जाती है, लक्ष्मी के लिए पूरन पोली का निवेद्ध बनाया जाता है। और लक्ष्मी के आगे दिवाली के लिए बनाई गई सब मिठाई और पैसे रखे जाते हैं। दिवाली पर लोग एक दूसरे के घर जाते हैं और बनाई हुई मिठाई एक दूसरे को खिलाते हैं। इससे आपसी प्रेम स्नेह बढ़ता है। लोग एक दूसरे को उपहार देते और सौभाग्य समृद्धि की कामना करते हैं। और पांचवें दिन भाऊ बीज होता है इससे भाई और बहन में प्यार, स्नेह बढ़ता है।
दिवाली क्यों मनाते हैं?
भारत में दिवाली क्यों मनाई जाती है?(Diwali kyun manai jati hai?)इसके कई सारे कारण और कहानीया देखने को मिलती है।
1. राम, सीता, लक्ष्मण की अयोध्या वापसी
पौराणिक कथा के अनुसार दिवाली मनाने की पहली वजह यह मानी जाती है कि भगवान राम 14 साल के लिए वनवास गए थे और वह रावण को हराकर इशिता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या इसी समय पर लौटे थे। इसलिए पूरे भारत भर में इसी दिन को याद रखते हुए दिवाली मनाई जाती है।
2. देवी लक्ष्मी का पुनर्जन्म
मान्यता है कि अमृत के लिए पुराने जमाने में महासागर में समुद्र मंथन किया था। इसी समुद्र मंथन में देवी लक्ष्मी का पुनर्जन्म हुआ था। उसके बाद उसने विष्णु को पति रूप में चुना था और उनसे शादी की। दिवाली देवी लक्ष्मी के पुनर्जन्म पर भी मनाई जाती है जो समुद्र मंथन में पैदा हुई थी। पौराणिक मान्यता के अनुसार दिवाली की रात ही माता लक्ष्मी ने विष्णु को अपने पति रूप में चुनकर उनसे विवाह किया था।
3. नरकासुर का वध
इस साल नरक चतुर्थी सोमवार,20 अक्टूबर 2025 को है। हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु का अवतार कृष्ण रूप था यह उनका 8वां अवतार था। भगवान कृष्ण ने रक्षा नरकासुर को इसी दिन वध किया था, राक्षस नरकासुर दुष्ट राजा था। वह अपनी प्रजा तथा देव देवताओं के लिए संकट बन गया था। वह बहुत ज्यादा अहंकार में लोगों तथा देवताओं का
छल किया करता था। उसने अपने दृष्ट शासन से देवताओं की 16,000 कन्याओं का अपहरण कर लिया था। और देवताओं की मां अदिति की कानून की बालियां चुरा कर ले गया था।
भारत के उत्तर भाग में दक्षिणी तमिल और असम के कुछ हिस्सों में, नरक चतुर्दशी यानी की छोटी दिवाली मनाई जाती है। जिस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था उसी दिन की याद में खुशी के माहौल में नरक चतुर्दशी यानी की छोटी दीवाली मनाई जाती है।
4. पांडवों की हस्तिनापुर वापसी
मान्यता है कि महाभारत के अनुसार कार्तिक अमावस्या की रात को पांचो पांडव भाई और उनकी पत्नी द्रौपदी और उनकी माता कुंती के साथ 12 साल का वनवास बीतने के बाद हस्तिनापुर लौट आए थे। पांचों पांडव हस्तिनापुर आते ही पूरे शहर में चमकीली मिट्टी के दीयों से रोशनी कर दी थी। मान्यता है कि इस दिन को यादगार रखने के लिए दिवाली में दीये जलाने परंपरा है।
दिवाली का इतिहास
दिवाली का मुख्य इतिहास बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में जुड़ा हुआ है। भगवान श्री रम
14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। और उनका स्वागत दीए जलाकर किया गया था। इसलिए यह त्यौहार एक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है जिसमें बिन धर्म की अपनी-अपनी मान्यताएं हैं। समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक अमावस्या को देवी लक्ष्मी का जन्म हुआ था। और इसी दिन से दीपावली के दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
भारत के उत्तर भाग में और कई ऐसी भागों में कई समुदाय और व्यापारी लोगो में दिवाली हिंदू नव वर्ष का शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। और इस दिन धनतेरस के साथ ही बही-खातों की पूजा करके नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत की जाती है।
जैन धर्म में दिवाली भगवान महावीर का अंतिम निर्वाण यानी कि मोक्ष का प्रतीक माना जाता है। जैन लोग इसे 'महावीर निर्वाण दिवस' के रूप में मनाते हैं और ज्ञानोदय देव की याद में दीप जलते हैं।
दिवाली की अवसर पर सिख धर्म में इस दिन को 'बंदी छोड़ दिवस' कहा जाता है। माना जाता है कि यह दिन छठे गुरु गुरु गोविंद सिंह की रिहाई का प्रतीक है, उन्हें 52 अन्य राजकुमारों के साथ कैद किया गया था। इसलिए यह दिन कैद से उन्हें छोड़ने के बाद खुशी में मनाया जाता है।
कई जगहों पर कुछ बौद्ध लोग दिवाली को सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म स्वीकार करने के दिन को यादगार के रूप में भी मानते हैं।
अन्य मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था और इसी विजय के कारण गोकुल वासियों ने उत्सव मनाया था, जिसे नरक चतुर्दशी के रूप में भी मनाया जाता है।
निष्कर्ष(Conclusion):
भारत के सभी जगह पर दिवाली मनाई जाती है। खासकर महाराष्ट्र और गुजरात भागों में इसका सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक बड़ा महत्व है। दिवाली की त्योहार पर ठंडी के दिन मिठाई बनाई जाती है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। इस त्यौहार पर हमें साफ सफाई रोशनी यानी प्रकाश का महत्व समझता है। दिवाली के बारे में आपको बताते हुए हमने इस ब्लॉग आर्टिकल में दिवाली कब है? ,दिवाली क्यों मनाई जाती है?, दिवाली का महत्व, दिवाली का इतिहास इसके बारे में जानकारी दी है। ऐसे ही त्यौहार, उत्सव और कार्यक्रम के बारे में जानने के लिए हमें इवेंट टुडे(eventtodays.com) ये हमारे ब्लॉग पर पर फॉलो करें। ब्लॉग को अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद।
FAQS
1. दिवाली कब है?
दिवाली पांच दिवसीय प्रकाश का पर्व है। दिवाली की शुरुआत वसुबारस और धनतेरस से होती है।
शुक्रवार 17 अक्टूबर 2025 से दिवाली शुरू होगी। और मुख्यतः महाराष्ट्र में मंगलवार 21 अक्टूबर 2025 को लक्ष्मी पूजन किया जाएगा।
हिंदू पंचांग के अनुसार महाराष्ट्र में इसी दिन दिवाली मनाई जाती है।
2. धनतेरस की असली कहानी क्या है?
पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन करते समय धन्वंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुआ था और माता लक्ष्मी भी प्रकट हुई थी। और एक कहानी में कहा जाता है कि राजा हेमा नामक का राजा था उसका पुत्र यानी राजकुमार की पत्नी ने यमराज को चकमा देकर उसकी जान बचाई थी।
इसी कारण धनतेरस पर धन्वंतरी, लक्ष्मी और यम की पूजा की जाती है। धन और स्वास्थ्य के लिए बर्तन और सोने, चांदी के खरीदने की परंपरा है।
3. दिवाली का इतिहास
दिवाली का इतिहास अंधकार पर प्रकाश का विजय और बुराई पर अच्छाई का विजय का प्रतीक माना जाता है। श्री राम 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे और पांच पांडव 12 साल के वनवास के बाद हस्तिनापुर लौटे थे।
और उन्होंने अपने शहरों में घरों में दीये जलाए थे।
समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी और धन्वंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था और इंद्रदेव के क्रोध से गोकुल वासियों को बचाने के लिए अपने उंगली पर गोवर्धन पर्वत लिया था। इस दौरान इंद्रदेव ने 7 दिन केले बहुत बारिश छोड़ी थी और आखिरकार श्री कृष्ण से हार मानी थी। इस त्यौहार का धार्मिक और सांस्कृतिक बहुत बड़ा महत्व है।
4. धनतेरस कब है?
भारत के महाराष्ट्र में शनिवार 18 अक्टूबर 2025 को धनतेरस का पर्व मनाया जाएगा। इसी दिन लोग सोना चांदी और बर्तन खरीदते हैं क्योंकि धनतेरस का अर्थ है तेरह गुना। इससे घर में सुख समृद्धि ओर ज्यादा बढ़ती है।
5. वसुबारस के पीछे की कहानी क्या है?
वसुबारस को गोवत्स द्वादशी भी कहा जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्न निकले थे। उसी समुद्र मंथन से कामधेनु गाय निकली थी। यह गाय एक चमत्कारी और सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाली गाय थी। इसलिए इस दिन गाय को कामधेनु के रूप में पूजा की जाती है। जिससे सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और घर में सुख समृद्धि आती है।